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कविता

मुन्किर

मुंशी रहमान खान


मुस्लिम नहीं कहावई चलैं कुरान मग त्‍याग।
घर में हीरा छोड़कर बाहर लेवैं साग।।
बाहर लेवैं साग आय भाइन भड़कावै।
करैं हरामी काम आप मूस्लिम कहलावैं।।
करैं बखेड़ा दीन में बनें खुदा घर मुजरिम।
कहैं रहमान जहन्‍नुम जैहैं मुन्किर होकर मुस्लिम।।

 


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